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MUMBAI, MAHARASHRA, India
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28 July, 2021

Shiv Tandav Strotam - with Hindi Meaning - शिव तांडव स्तोत्र

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥

उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है, और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है, और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है, भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।

 जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥

मेरी शिव में गहरी रुचि है, जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है, जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं? जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है, और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे, अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं, जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं, जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है, और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।

मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं, उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है, ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें, जिनका मुकुट चंद्रमा है, जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं, जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है, जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें, जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था, जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं, जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।

करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।

धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं, जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया, उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है, वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर, सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं। 

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें, वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं, जिनकी शोभा चंद्रमा है, जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है, जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है। 

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है, पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ, जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है। जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया। 

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं, शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण, जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

 जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड, तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है, जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण, गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई। 

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता, जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि, घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति, सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति, सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए, अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए, अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए, महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है, वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है। इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है। बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।

02 May, 2021

Durga Dwatrinsha Namavali - 32 Names of Durga in Sanskrit Sholk

अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला

दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।

दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी॥१॥

दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा।

दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला॥२॥

दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।

दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता॥३ ॥

दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी।

दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी॥४ ॥

दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वारी॥५ ॥

दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी।

नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः॥

पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः॥६॥

१ दुर्गा , २ दुर्गतिशमनी , ३ दुर्गापद्वीनिवारिणी , ४ दुर्गमच्छेदिनी , ५ दुर्गसाधिनी , ६ दुर्गनाशिनी , ७ दुर्गतोद्धारिणी , ८ दुर्गहंत्री , ९ दुर्गमापहा , १० दुर्गमज्ञानदा , ११ दुर्गदैत्यलोकदवानला , १२ दुर्गमा , १३ दुर्गमालोका , १४ दुर्गमात्मस्वरूपिणी , १५ दुर्गमार्गप्रदा , १६ दुर्गमविद्या , १७ दुर्गमाश्रिता , १८ दुर्गमज्ञानसंस्थाना , १९ दुर्गमध्यानभासिनी , २० दुर्गमगा , २१ दुर्गमगा , २२ दुर्गमार्थस्वरूपिणी , २३ दुर्गमासुरसंहन्त्री , २४ दुर्गमायुधधारिणी , २५ दुर्गमाङ्गी ,२२६ दुर्गमता , २७ दुर्गम्या , २८ दुर्गमेश्वरी , २९ दुर्गमीमा , ३० दुर्गभामा , ३१ दुर्गभा , ३२ दुर्गदारिणी ।


श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् - 108 names of Shree Durga in shlok form

 

॥ श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

ईश्‍वर उवाच

शतनाम प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व कमलानने।

यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती॥1॥

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।

आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी॥2॥

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः।

मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः॥3॥

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी।

अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः॥4॥

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्‍‌नप्रिया सदा।

सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी॥5॥

अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती।

पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी॥6॥

अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी।

वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता॥7॥

ब्राह्मी माहेश्‍वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा।

चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्‍च पुरुषाकृतिः॥8॥

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।

बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना॥9॥

निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी।

मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी॥10॥

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी।

सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा॥11॥

अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी।

कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः॥12॥

अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।

महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला॥13॥

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी।

नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी॥14॥

शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्‍वरी।

कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी॥15॥

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्।

नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति॥16॥

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।

चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्‍वतीम्॥17॥

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्‍वरीम्।

पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम्॥18॥

तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि।

राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात्॥19॥

गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण।

विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः॥20॥

भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते।

विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम्॥21॥

॥ इति श्रीविश्‍वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥

सप्‍तश्र्लोकी दुर्गा पाठ (7 Sholk of Durga path)

                                      देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।

कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्रतः॥

देव्युवा

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।

मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥

विनियोग

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमह्मकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा।

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः

स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि त्वदन्या

सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥

सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥

रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।

एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥

॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥

24 April, 2021

वृत्रासुर स्तुति (Vrutrasur Chaturshloki Stuti)

 

अहं हरे तव, पादैक मूल,

दासानुदासो, भवितास्मि भूय:।
मन: स्मरेतासुपतेर्गुणांस्ते,
गृणीत् वाक्कर्म करोतु काय:॥

*हे श्री हरि ! मैं सदा आपके चरणारविंद का आश्रय करने वाले आपके दासों का भी दास बनुं। मेरा मन- मेरे प्राणपति ! आपके ही गुणों का स्मरण करता रहे। मेरी वाणी आपके गुणों का गान करती रहे और मेरा देह आपकी सेवा का कार्य करता रहे ऐसी कृपा करें।*

न नाकपृष्ठं, न च पारमेष्ठ्यं,
न सार्वभौम, न रसाधिपत्यम्।
न योगसिद्धिर्पुनर्भवम् वा,
समंजसत्वा, विरहय्य कांक्षे ॥

*हे समग्र ऐश्वर्य के भंडार भगवान ! मैं आपको छोडकर स्वर्गलोक, ब्रह्मलोक, चक्रवर्तीपद, रसातल का स्वामित्व, अणिमादि योगकी सिद्धियों या मोक्षकी भी इच्छा भी नहीं रखता। (मैं तो केवल आपके शरण की ही कामना करता हूँ)*

अजातपक्षा, ईव मातरं खगा:,
स्तन्यं यथा वत्सतरा: क्षुधार्ता:।
प्रियंप्रियेव, व्यूषितं विषण्णा, मनोरविंदाक्ष दिदृक्षते त्वाम् ॥ 

*हे कमलनेत्र ! पंख प्राप्त नहीं होने वाले पक्षियों के बच्चे जैसे माता को देखने के लिये लालायित होते हैं। क्षुधा पीड़ित छोटे बछड़े जिस तरह स्तन पान करने के लिये उत्सुक होते है। और काम से पीड़ित पत्नी जिस तरह विदेश गये हुए पति को देखने के लिये उत्सुक होती है वैसे ही मेरा मन भी आपके दर्शन करनेको अति आतुर बन गया है।*

ममोत्तम श्लोक जनेषु सख्यं, संसारचक्रे, भ्रमत: सवकर्मभि:।
त्वन्माययात्मात्मजदार गेहेष्वासक्तचित्तस्य न नाथ भूयात् ॥
 
*हे नाथ ! अपने कर्मो के अनुसार इस संसार चक्र में भ्रमण करता हुआ मुझे उत्तम कीर्ति प्राप्त आपके भक्तों की ही मैत्री प्राप्त हो; परंतु जो आपकी माया को वश होकर देह, पुत्र, स्त्री और घर में ही आसक्ति रखते हो उनसे मेरा कदापि सम्बन्ध न हो। यदि मैं दु:संग से बचूँगा तो ही आपकी कृपा का अधिकारी बनुंगा।*

28 March, 2021

HOLI - होली

 "अयं होलीमहोत्सवः भवत्कृते भवत्परिवारकृते च क्षेमस्थैर्य आयुः आरोग्य ऐश्वर्य अभिवृद्घिकारकः  भवतु अपि च श्रीसद्गुरुकृपा प्रसादेन सकलदुःखनिवृत्तिः आध्यात्मिक प्रगतिः श्रीभगवत्प्राप्तिः च भवतु इति"

      !!!होलिकाया: शुभाशया:!!!

 होली का यह पावन पर्व आपको व आपके परिवार के लिए सुख,समृद्धि,ऐश्वर्य,आरोग्य, प्रेम,भाईचारा,आत्मोन्नति,ईश्वर की कृपा व सर्व विघ्ननष्ट कारक एवं असीम ख़ुशियों से भरा हो!



09 March, 2021

नाकोडा पाश्र्वनाथ mantra - Shri Nakoda Parshvanath Mantra


 ।।ॐ ह्री़ं श्रीं  नाकोडा पाश्र्वनाथाय नम: सर्वेषु संदेंषु सुख सौभाग्य जयंं - विजयं कुरू कुरु स्वाहा।।

28 February, 2021

श्री नाकोडा भैरव मंत्र - Shri Nakoda Bhairav Mantra

 ऊँ हीँ क्लाम् क्लीम् क्लुम् खाम खीम

खुम स्वाहा कुरुं कुरुं आपदा उद्वारणाय , स्वर्ण आकर्षणाय, श्री नाकोडा भैरवाय मम् दरिद्रम् निर्मूल करणाय, लोकेष्वराय, साँणदाय ऊँ महा भैरवाय नमो नमः

।।ॐ ह्री़ं श्रीं क्लुं श्री नाकोडा भैरवाय नमोस्तु ठ: ठ: ठ: स्वाहा।।



णमोकार मंत्र - Namokar Maha Mantra - with meaning - मंत्र का अर्थ

 णमो अरिहंताणं,

णमो सिद्धाणं,

णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं ।
एसोपंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो ।
मंगला णं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं ।

Navkar Mantra - English text

Namah Arihantanam
Namah Siddhhanam
Namah Ayariyanam
Namah Uvjhayanam
Namah Loye Savva Saahunam
Aiso Panch Namahkkaro, Savva Paav Panasano I
Manglanancha Savvesim, Padhmam Havei Mangalam II

Meaning of Navkar Mantra (नवकार (णमोकार) मंत्र का अर्थ)

अरिहंतो को नमस्कार
सिद्धो को नमस्कार
आचार्यों को नमस्कार
उपाध्यायों को नमस्कार
सर्व साधुओं को नमस्कार

ये पाँच परमेष्ठी हैं । इन पवित्र आत्माओं को शुद्ध भावपूर्वक किया गया यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है ।
संसार में सबसे उतम मंत्र है ।

Meaning of Navkar Mantra - English

Namah Arihantanam : I bow to the Arihantas (the perfect human beings)
Namah Siddhhanam : 
I bow to the Siddhhas (liberated body less souls)
Namah Ayariyanam :
 I bow to the Acharyas (masters and the heads of congregations)
Namah Uvjhayanam : 
I bow to the Upadhyayas (spiritual teachers)
Namah Loye Savva Saahunam: 
I bow to all the Sadhus (spiritual practitioners) in the world
Aiso Panch Namahkkaro : 
Worshiping all these five
Savva Paav Panasano : 
destroys all sins and obstacles
Manglanancha Savvesim : 
Among all that is auspicious
Padhmam Havei Mangalam : 
this "Navkar Mantra" is the foremost.

श्री घंटाकर्ण महावीर विध्न विनाशक मंत्र - Ghantakarna Mahaveer Mantra


 ॐ घंटाकर्णो महावीर सर्व व्याधि विनाशक । विस्फोटक भये प्राप्ते रक्ष रक्ष महाबल ॥

यत्र त्वं तिष्ठसे देव लिखितोऽक्षर शक्तिभिः । रोगास्तत्र प्रणश्यंति वात पित्त कफोद्भवाः ।।

तत्र राज भयं नास्ति यांति कर्णे जपात्क्षयम् ।
शाकिनी भूत वेताला राक्षस प्रभवंति न ।
नाकाले मरणं तस्य न च सर्पिणी डश्यते ।
अग्नि श्चौर भयं नास्ति ह्रीम् घंटाकर्णोनमोस्तुते ठः ठः ठः स्वाहा ॥

18 February, 2021

त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच - Bhramyaman Trailokya Mangal Surya Stotram in Sanskrit

 

।। त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच।। ।। पूर्व पीठीका: श्री सूर्योवाच।।

साम्ब साम्ब महाबाहो ! श्रृणु मे कवचं शुभम्। त्रैलोक्य मंगलं नाम, कवचं परमाद्भुतम्।।
यद् ज्ञात्वा मन्त्र वित् सम्यक्, फलं निश्चितम्। यद् धृत्वा च महा देवो, गणानामधिपोऽभवत्।।
पठनाद्धारणाद्विष्णुः, सर्वेषां पालकः सदा। एवमिन्द्रादयः सर्वे, सर्वैश्वर्यमवाप्रुवन्।।

विनियोग :- ॐ अस्य श्रीसूर्य कवस्य ब्रह्मा ऋषि, अनुष्टुप छन्दः, सर्वदेव नमस्कृत श्रीसूर्योदेवता, यशारोग्य मोक्षेषु पाठे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यासः– शिरसि श्रीब्रह्मार्षये नमः। मुखे अनुष्टुपछन्दसे नमः। हृदि श्रीसूर्य देवतायै नमः। सर्वांगे यशारोग्य मोक्षेषु पाठे विनियोगाय नमः।

।। मूल कवच पाठ ।।

प्रणवो मे शिरः पातु, घणिर्मे पातु भालकम्।
सूर्योऽव्यान्नयनद्वन्द्वं, आदित्यः कर्ण युग्मकम्।।

अष्टाक्षरो महामन्त्रः, सर्वाभीष्ट फलप्रदः।
ह्रीं बीजं मे मुखं पातु, हृदयं मे भुवेश्वरो।।

चन्द्र बिम्बं विंशदाद्यः, पातु मे गुह्य देशकम्।
अक्षरोऽसौ महा मन्त्रः, सर्व तन्त्रेषु गोपितः।।

शिवो वह्नि समायुक्तो, वामाक्षी बिन्दु भूषितः।
एकाक्षरो महा मन्त्रः, श्री सूर्यस्य प्रकीर्तितः।।

गुह्याद्गुह्यतरो मन्त्रो, वांछा चिन्तामणिः स्मृतः।
शीर्षादि पाद पर्यन्तं, सदा पातु मनूत्तमः।।

।। फल श्रुति ।।

इति ते कथितं दिव्यं, त्रिषु लोकेषु दुर्लभम्।
श्रीप्रदं कान्तिदं नित्यं, धनारोग्य विवर्द्धनम्।।

कुष्ठादि रोग शमनं, महा व्याधि विनाशनम्।
त्रि सन्ध्यं यः पठेन्नित्यमरोगी बलवान् भवेत्।।

बहुना किमिहोक्तेन, यद्यन्मनसि वर्तते।
तत्सर्वं भवेत्तस्य, कवचस्य च धारणात्।।

भूत प्रेत पिशाचाश्च, यक्ष गन्धर्व राक्षसाः।
ब्रह्म राक्षस वेतालाःष्टु न दृष्टमपि ते क्षमाः।।

दूरादेव पलायन्ते, तस्य संकीर्तनादपि।
भूर्जपत्रे समालिख्य, रोचनाडगुरूकुंकुमैः।।

रविवारे च संक्रान्त्यां, सप्तम्यां च विशेषतः।
धारयेत् साधक श्रेष्ठः, श्रीसूर्यस्य प्रियो भवेत्।।

त्रिलौह मध्यगं कृत्वा, धारयेद्दक्षिणे करे।
शिखायामथवा कण्ठे, सोऽपि सूर्ये न संशयः।।

इति ते कथितं साम्ब, त्रैलोक्य मंगलाभिधम्।
कवचं दुर्लभं लोके, तव स्नेहात् प्रकाशितम्।।

अज्ञात्वा कवचं दिव्यं, यो जपेच्छूर्य मन्त्रकम्।
सिद्धिर्न जायते तस्य, कल्प कोटि शतैरपि।।

।। श्रीब्रह्म-यामले तन्त्रे श्रीत्रैलोक्य मंगलं नाम सूर्य कवचं।।

05 February, 2021

SUDARSHAN KAVACH - सुदर्शन -कवच

 ‘सुदर्शन -कवच ’—–

वैष्णवानां हि रक्षार्थं ,
श्रीवल्लभः – निरुपितः।
सुदर्शन महामन्त्रो,
वैष्णवानां हितावहः।।
मन्त्रा मध्ये निरुप्यन्ते ,
चक्राकारं च लिख्यते।
उत्तरा – गर्भ- रक्षां च ,
परीक्षित – हिते- रतः।।
ब्रह्मास्त्र – वारणं चैव ,
भक्तानां भय – भञ्जनः। वधं
च सुष्ट -दैत्यानां , खण्डं-
खण्डं च कारयेत्।।
वैष्णवानां हितार्थाय , चक्रं
धारयते हरिः। पीताम्बरो पर-
ब्रह्म, वन – माली गदाधरः।।
कोटि – कन्दर्प-लावण्यो ,
गोपिका -प्राण – वल्लभः। श्री –
वल्लभः कृपानाथो ,
गिरिधरः शत्रुमर्दनः।।
दावाग्नि -दर्प – हर्ता च ,
गोपीनां भय – नाशनः।
गोपालो गोप -कन्याभिः ,
समावृत्तोऽधि – तिष्ठते।।
वज्र – मण्डल- प्रकाशी च ,
कालिन्दी -विरहानलः।
स्वरुपानन्द-दानार् थं,
तापनोत्तर -भावनः।।
निकुञ्ज -विहार-भावाग्ने ,
देहि मे निज दर्शनम्। गो –
गोपिका -श्रुताकीर्णो , वेणु –
वादन -तत्परः।।
काम – रुपी कला -वांश्च ,
कामिन्यां कामदो विभुः।
मन्मथो मथुरा – नाथो ,
माधवो मकर -ध्वजः।।
श्रीधरः श्रीकरश्चैव , श्री-
निवासः सतां गतिः।
मुक्तिदो भुक्तिदोविष्णुः ,
भू – धरो भुत -भावनः।।
सर्व -दुःख – हरो वीरो , दुष्ट –
दानव-नाशकः।
श्रीनृसिंहो महाविष्णुः, श्री-
निवासः सतां गतिः।।
चिदानन्द – मयो नित्यः ,
पूर्ण – ब्रह्म सनातनः। कोटि –
भानु- प्रकाशी च , कोटि – लीला –
प्रकाशवान्।।
भक्त – प्रियः पद्म – नेत्रो ,
भक्तानां वाञ्छित -प्रदः।
हृदि कृष्णो मुखे कृष्णो ,
नेत्रे कृष्णश्च कर्णयोः।।
भक्ति – प्रियश्च श्रीकृष्णः ,
सर्वं कृष्ण – मयं जगत्। कालं
मृत्युं यमं दूतं, भूतं प्रेतं च
प्रपूयते।।
“ॐ नमो भगवते महा-
प्रतापाय महा – विभूति- पतये ,
वज्र – देह वज्र – काम वज्र –
तुण्ड वज्र – नख वज्र -मुख
वज्र – बाहु वज्र – नेत्र वज्र –
दन्त वज्र – कर-कमठ
भूमात्म-कराय , श्रीमकर-
पिंगलाक्ष उग्र -प्रलय
कालाग्नि- रौद्र- वीर-
भद्रावतार पूर्ण -ब्रह्म
परमात्मने , ऋषि -मुनि –
वन्द्य- शिवास्त्र-
ब्रह्मास्त्र- वैष्णवास्त्र-
नारायणास्त्र- काल- शक्ति-
दण्ड-कालपाश -अघोरास्त्र-
निवारणाय , पाशुपातास्त्र-
मृडास्त्र -सर्वशक्ति-
परास्त -कराय , पर – विद्या-
निवारण अग्नि -दीप्ताय ,
अथर्व -वेद- ऋग्वेद- साम –
वेद -यजुर्वेद- सिद्धि-कराय ,
निराहाराय , वायु – वेग मनोवेग
श्रीबाल-
कृष्णः प्रतिषठानन्द –
करः स्थल -जलाग्नि -गमे
मतोद् -भेदि , सर्व – शत्रु छेदि –
छेदि, मम बैरीन्
खादयोत्खादय , सञ्जीवन –
पर्वतोच्चाटय, डाकिनी – शाक
िनी – विध्वंस – कराय महा –
प्रतापाय निज – लीला-
प्रदर्शकाय निष्कलंकृत –
नन्द-कुमार – बटुक- ब्रह्मचारी
-निकुञ्जस्थ-भक्त – स्नेह-
कराय दुष्ट – जन-स्तम्भनाय
सर्व-पाप – ग्रह- कुमार्ग-
ग्रहान् छेदय छेदय, भिन्दि-
भिन्दि, खादय, कण्टकान्
ताडय ताडय मारय मारय,
शोषय शोषय, ज्वालय-
ज्वालय, संहारय – संहारय ,
(देवदत्तं ( नाशय नाशय ,
अति – शोषय शोषय , मम
सर्वत्र रक्ष रक्ष, महा –
पुरुषाय सर्व – दुःख-
विनाशनाय ग्रह- मण्डल- भूत-
मण्डल- प्रेत- मण्डल- पिशाच-
मण्डल उच्चाटन उच्चाटनाय
अन्तर-भवादिक – ज्वर-
माहेश्वर – ज्वर- वैष्णव-
ज्वर-ब्रह्म – ज्वर-विषम –
ज्वर -शीत – ज्वर- वात- ज्वर-
कफ- ज्वर-एकाहिक -द्वाहिक-
त्र्याहिक- चातुर्थिक- अर्द्ध-
मासिक मासिक षाण्मासिक
सम्वत्सरादि- कर भ्रमि –
भ्रमि, छेदय छेदय,
भिन्दि भिन्दि, महाबल-
पराक्रमाय महा -विपत्ति-
निवारणाय भक्र -जन- कल्पना
– कल्प- द्रुमाय- दुष्ट- जन-
मनोरथ-स्तम्भनाय
क्लीं कृष्णाय गोव िन्दाय
गोपी -जन – वल्लभाय नमः।।
पिशाचान् राक्षसान् चैव, हृदि
– रोगांश्च दारुणान् भूचरान्
खेचरान् सर्वे ,
डाकिनी शाकिनी तथा।।
नाटकं चेटकं चैव, छल -छिद्रं
न दृश्यते। अकाले मरणं
तस्य, शोक – दोषो न
लभ्यते।।
सर्व -विघ्न- क्षयं यान्ति ,
रक्ष मे गोपिका – प्रियः। भयं
दावाग्नि- च ौराणां, विग्रहे
राज – संकटे।।
।।फल -श्रुति।।
व्याल -व्याघ्र -महाशत्रु- वैरि
– बन्धो न लभ्यते। आधि –
व्याधि-हरश्चैव , ग्रह -पीडा –
विनाशने।।
संग्राम -जयदस्तस्माद् ,
ध्याये देवं सुदर्शनम्।
सप्तादश इमे श्लोका ,
यन्त्र – मध्ये च लिख्यते।।
वैष्णवानां इदं यन्त्रं,
अन्येभ्श्च न दीयते। वंश –
वृद्धिर्भवेत् तस्य, श्रोता च
फलमाप्नुयात्।।
सुदर्शन -महा -मन्त्रो , लभते
जय – मंगलम्।।
सर्व – दुःख- हरश्चेदं , अंग-
शूल-अक्ष -शूल- उदर- शूल-
गुद -शूल -कुक्षि- शूल- जानु-
शूल-जंघ -शूल -हस्त -शूल –
पाद-शूल – वायु-शूल – स्तन-
शूल- सर्व- शूलान् निर्मूलय ,
दानव – दैत्य- कामिनि वेताल –
ब्रह म्- राक्षस -कालाहल-
अनन्त – वासुकी- तक्षक-
कर्कोट – तक्षक- कालीय-
स्थल -रोग -जल- रोग- नाग-
पाश- काल- पाश- विषं निर्विषं
कृष्ण! त्वामहं शरणागतः।
वैष्णवार्थं कृतं यत्र
श्रीवल्लभ- निरुपितम्।। ॐ